Amb Satish Chandra, Dean, Centre for National Security and Strategic Studies, VIF
Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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जैसा कि प्रत्येक विदेश दौरे में होता आया है उसे कायम रखते हुए इस बार भी प्रधानमंत्री ने मनिला के अपने दौरे से देश को गौरवान्वित किया है.
अलग-अलग कार्यक्रमों में भागीदारी के साथ ही एक कर्मशील एजेंड़े को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने आशियान का उद्घाटन समारोह, 12वाँ आशियान समारोह, आशियान बिज़नेस एवं इन्वेस्टमेंट समिट और 12वें पूर्वी-एशिया समिट में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. कई बड़े नेताओ की उपस्थति में ,अनेक दिपक्षीय एवं एकल बैठकों की मेजबानी करते हुए प्रधानमंत्री ने भारत को आशियान के एक गंभीर, सक्रिय सदस्य के तौर पर प्रस्तुत किया जो मित्रवत होने के साथ ही अपनी सुरक्षा सम्बन्धी मसलों पर बेहद सख्त है और इसको मजबूत करने वाली नियम-आधारित आधारभूत संरचना को विकसित करने हेतु अग्रसर है। प्रधानमंत्री की टिप्पणियों एवं उनके भाषण से हम भारत के आशियान समिट में भागीदारी को लेकर कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार से संदर्भित कर सकते है:-
• एशियान, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में घरेलू सुरक्षा हेतु आधारभूत संरचना को विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भारत की पूर्व-देखो निति में भी इसका अहम योगदान है.
• आशियान द्वारा भारत यह सुनिश्चिता प्रदान करता है जिसके तहत की वह क्षेत्रीय हितों को बल प्रदान करने और शांतिपूर्ण विकास को बढ़ावा देने हेतु नियम-आधारित आधारभूत संरचना का निर्माण करेगा.
• भारत और आशियान का घनिष्ठ सहयोग,मुख्यतः तीन स्तम्भों पर आधारित है : राजनैतिक सुरक्षा, आर्थिकी एवं संस्कृतिक साझेदारी.
• कट्टरपंथ एवं आतंकवाद के विरुद्ध भी भारत और आशियान को एक साथ खड़ा होना चाहिए.
• भारत का आशियान से जुड़ाव हमेशा से बना रहा है और इसे आगे और भी मज़बूती प्रदान की जाएगी. इसी की शुरुआत करते हुए भारत की राजधानी दिल्ली में दिसम्बर 2017 में आशियान-इंडिया कनेक्टिविटी समिट का आयोजन किया जायेगा जिसमें आशियान देशों से जुड़े मंत्री, कारोबारी, अफ़सर प्रतिनिधि आदि भाग लेंगे.
जनवरी 2018 में आशियान के बड़े नेताओं के लिए आयोजित होने वाले इंडिया आशियान कोमेमोरेटिव समिट के साथ ही भारत आशियान-भारत बिज़नेस एंड इन्वेस्टमेंट मीट एंड एक्सपो भी आयोजित करेगा. भारत,आशियान की बढ़ोत्तरी में भागीदार बनना चाहता है और आशियान की ओर से भी इसी तरह कि पहल की उम्मीद रखता है.
भारत-फिलीपींस की द्विपक्षीय वार्ता के दौरान जिन चार समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए उनमें उल्लेखित बिंदुओं पर यदि नज़र डालें तो हम यह आसानी से समझ सकते है की भारत के आशियान से क्या सम्बन्ध रहे होंगे. पहले समझौता ज्ञापन में रक्षा, रसद एवं सहयोग, मानवीय आधारों पर सहायता, आपदा-प्रबंधन आदि सम्मलित है तो वही दूसरे में कृषि सम्मिलित है. तृतीय ज्ञापन में कुटीर,लघु एवं मध्य उद्योग शामिल है. चौथे एवं अंतिम ज्ञापन में इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स एवं फिलीपींस सर्विस इंस्टिट्यूट के बीच एक समझौता तय हुआ है.
मोदी की मनिला दौरे से पहले की शाम को एक अहम बात यह हुई की, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं भारत के बीच सचिव स्तर पर एक वार्ता हुई. इस तरह की चतुर्पक्षीय बातचीत की शुरुआत जापानी प्रधानमंत्री अबे द्वारा एक दशक पहले प्रस्तावित कि गयी थी. इसके पीछे उद्देश्य यह था कि नियम आधारित सिद्धांत को लागू करते हुए क्षेत्रीय आदेश लाये जायेंगे एवं नेविगेशन (पथ-प्रदर्शन) की स्वतंत्रता के जरिये मुक्त-व्यापर को बढ़ावा दिया जा सकेगा.
2007 में भारत-अमेरिका के बीच हुए मालाबार व्यायाम जिसमे जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं भी शामिल थी, ऐसे ही प्रयासों में से एक था. मगर चीन के दवाब में ऑस्ट्रेलिया को इस से पीछे हटना पड़ा और यह व्यायाम केवल अमेरिका तक सीमित रहा. उसके कुछ वर्ष बाद 2015 में जापान इसका नियमित सदस्य बना.
इस चतुर्पक्षीय वार्ता कि पहल एक बार फिर से होने की गुंजाईश है. जापान इन तीन लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर रक्षा, तटीय सुरक्षा और आधार भूत संरचना के विकास हेतु चर्चा करना चाहता है. इस बातचीत के आयोजन से यह साफ़ है कि कुछ समय पहले चीनी विदेश नीति के हावी होने के कारण भारत और ऑस्ट्रेलिया पर बन रही दवाब की स्थिति में कमी आई है.
इस बात में संशय है की इन दोनों देशों का इस क्षेत्र में स्वागत होगा. हालाँकि इस क्षेत्र में चीन के विकल्प के रूप में एक शक्ति की आवश्यकता है पर भारत अकेला अभी सैन्य-शक्ति एवं आर्थिक स्तर पर इतना परिपक्व नहीं है कि इस अहम जिम्मेदारी को निभा सके. साथ ही आशियान के साथ अपने द्विपक्षीय 70 बिलियन डॉलर के आर्थिक निवेश के बाद भी भारत का हिस्सा चीन के 15 प्रतिशत निवेश से भी कम है. इन सब विषयों को मद्देनज़र रखते हुए यह जरूरी है कि भारत इस लोकतांत्रिक चौकड़ी के साथ अपने संबंधों को बेहतर करे और इस क्षेत्र कि बेहतरी और यहाँ शांति-स्थापना पर काम करे जिससे इस इलाके में चीन के आधिपत्य को चुनौती दी जा सके.
इस चौकड़ी की प्रकर्ति को संदर्भित करने के प्रयास में ऑस्ट्रेलियायी विदेश मंत्री ने विवेचना करते हुए बताया कि उन्होंने “हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सम्पन्नता एवं रक्षा क्षेत्रों से जुड़े मसलों पर बातचीत की और इस मसले पर सभी लगभग एक जैसे ही राय रखते हैं और इस ओर काम करने का प्रयास भी करेंगें जिससे कि इस क्षेत्र को खुला और मुक्त रखा जा सके.
सम्बंधित अधिकारियों ने ऐसे कारक एवं कार्यों का निरीक्षण किया है जिससे वे समान उद्देश एवं चुनौतियों पर काम कर सकें. इसमें हिन्द-प्रशांत क्षेत्र हेतु नियम-आधारित आदेश, अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन, नेविगेशन एवं ओवर फ्लाइट की स्वतंत्रता, बेहतर जुड़ाव और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में आतंकवाद के विरूद्ध कार्यवाही और समुद्री सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर भी ध्यान देने कि बात कही गयी है. अधिकारियों ने एक साथ मिलकर काम करने के मत पर सहमति दर्ज कराई है जिससे कि जन-संहार के बड़े यंत्रो और हथियारों की मौजूदगी से बढ़ती चिंता, डीपीआरके के परमाणु एवं मिसाइल अभियान जैसे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती देने वाले मसलों पर वे आपसी सहयोग से काम करेंगे. प्रतिभागियों ने चार देशों के बीच हुई बातचीत और सहयोग के मुद्दों के प्रति प्रतिबद्ध होना भी स्वीकार किया.
यह उम्मीद की जा रही है कि यह चौकड़ी न केवल बनी रहे बल्कि और भी फले-फूले, जिसके मायने यह है कि इसका नियमित संचालन हो। साथ ही इस उपयुक्त कार्यप्रणाली एवं यन्त्रप्रणाली के प्रयोग से चीन की ओर से उपजी दो बड़ी समस्याएं –सुरक्षा एवं बेल्ट और रोड का, सामना करने हेतू प्रयोग किया जा सके. चीन के विकल्प हेतू इन्हें कई ऐसे आकर्षक विकल्प पैदा करने की आवश्यता है जिनमें घरेलु उपज पैदा करने की क्षमता हो, जो बाह्य शक्तियों से प्रभावित न हो, पूर्ण-रूप से पारदर्शी हो और जो घरेलु अर्थव्यवस्था को संबलता प्रदान करे न कि किसी अन्य बाहरी को. साथ ही जिन्हें कठिन, जटिल शर्तों से नही अपितु बेहद उदार शर्तों पर वित्तीय पोषण प्रदान किया जा सके
भारत को अपने सारे पूर्वाग्रह से मुक्त होकर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की सहभागिता में सक्रिय होने के लिए इस चौकड़ी के साथ मिलकर प्रयास करने चाहिए. साथ ही इस क्षेत्रों के अन्य देशों को भी ‘नीली अर्थव्यवस्था’(ब्लू इकॉनमी ) में अधिक सहयोग बढ़ाने हेतु प्रेरित करना चाहिए. भारत की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है की ये अन्य देश, विशेषकर की चीन जैसे आक्रमक रवैय्ये का पक्षधर नही है. इस क्षेत्र में नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित करने का सन्देश इसलिए भी अहम है क्यूंकि महासागर यहाँ बड़े क्षेत्रफल में फैले हुए है और कई देश एक लम्बी सीमा समुद्र या महासागर के साथ बाँटते है. साथ ही हमारे सहयोग कार्यक्रम को ध्यान से इस प्रकार बनाया जाना चाहिए जिससे कि उस क्षेत्र-विशेष की घरेलु आवश्यताओं को पोषित किया जा सके. इन्हें शोषक नही बल्कि पोषक होना चाहिए जिससे की हम इन्हें तकनीक और सहयोग आसानी से उपलब्ध करवा सके. इस प्रकिया में भारत को नीली अर्थव्यवस्था के अनेकानेक अभियानों और परियोजनाओं से जुड़ने और उनमे विशेषज्ञता हाँसिल करने का मौका मिलेगा जिससे अर्थव्यवस्था को भी काफी फायदा होगा.
इन चार देशों के लक्ष्यों के स्तर पर ही इस चौकड़ी का भविष्य निर्भर करता है. साथ ही इन्हें चीन के अपरिहार्य रूप से पीछे हटने को लेकर भी संतुष्ट होना चाहिए. इसके अलावा हम अमेरिका पर अपनी निर्भरता को बढ़ावा न दे तो बेहतर है क्योंकि उसकी अपनी नीतियाँ आज प्रवाह में बह रही है. हर देश का चीन के साथ अपना अलग मसला है. अमेरिका और चीन एक दूसरे से आर्थिक रूप से जुड़े हुए है और आज दोनों ही इन योजनाओं से उन्मुख होने हेतू प्रयासरत है. यदि इस चौकड़ी को गंभीरता से कार्य करना है तो इन्हें इसकी औपचारिक पहल करनी होगी, बातचीत करनी होगी, चार्टर बनाना होगा, कार्यक्रम का विवरण तैयार करना होगा और उसके क्रियान्वन हेतु लक्ष्य निर्धारित करने होंगे. केवल तब ही इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है की इस समूह में और सदस्य शामिल होने चाहिए या नही. यह हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा सम्बन्धी आर्धरभूत संरचना की विकास हेतू आशियान में बातचीत की मध्यस्थता करने में भी सहायक होगा.
(लेखक वीआईएफ़ सलाहकार समिति के सदस्य है और पूर्व उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है. ये उनके निजी विचार है)
Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
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