Tuesday, October 31, 2017

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 19वें अधिवेशन से कितनी उम्मीद?


Arvind Gupta, Director - VIF

पेइचिंग में 18 अक्टूबर, 2017 को होने वाले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन (कांग्रेस) में राष्ट्रपति शी चिनफिंग को माओ और तेंग जैसे महान चीनी नेताओं की श्रेणी (हॉल ऑफ फेम) में रखा जाना तय है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति की 7वीं विस्तृत बैठक के अंत में 14 अक्टूबर, 2017 को जारी बयान में इसका संकेत दे दिया गया था। बैठक में चीनी संविधान में संशोधन को मंजूरी दी गई थी और “महासचिव शी के महत्वपूर्ण भाषणों एवं प्रशासन के लिए नए विचारों तथा नई रणनीतियों को लागू करने” की महत्ता पर जोर दिया गया था। शी को अपने पूर्ववर्ती हू चिंताओ तथा च्यांग झेमिन से भी ऊंचा दर्जा प्राप्त करने में सफलता मिल गई है। इन दोनों का नाम संविधान में नहीं दिया गया है। पार्टी के 19वें अधिवेशन में इस संशोधन को मंजूरी मिल सकती है।

इस प्रकार शी तेंग के बाद सबसे महत्वपूर्ण नेता के रूप में पार्टी अधिवेशन में हिस्सा लेंगे। उन्हें पिछले वर्ष “स्थायी” नेता घोषित कर दिया गया था। माओ और तेंग के समय चीन गरीब था और संघर्ष कर रहा था। उनके उलट शी ऐसे देश की अगुआई कर रहे हैं, जिसका लक्ष्य विश्व का सबसे शक्तिशाली देश बनना है। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने दिखाया है कि बाहर से सौम्य दिखने के बाद भी चीन के राष्ट्रीय हितों के लिए वह दृढ़निश्चयी और निर्दयी हो सकते हैं।

शी के पहले कार्यकाल को भ्रष्टाचार के विरुद्ध सतत अभियान के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाएगा क्योंकि उस अभियान ने पार्टी, केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के उच्चपदस्थ और शक्तिशाली अधिकारियों समेत लाखों लोगों पर प्रभाव डाला है। उसके जरिये उन्होंने तंत्र को साफ ही नहीं किया बल्कि संभावित प्रतिद्वंद्वियों को रास्ते से हटा भी दिया। अब उनके पास पोलितब्यूरो की ताकतवर स्थायी समिति, पोलितब्यूरो और पार्टी के अन्य अंगों में अपने वफादारों को शामिल करने का अवसर है। इन निकायों की नई संरचना से इस बात का संकेत मिलेगा कि शी को पार्टी के किसी भी हिस्से से चुनौती का सामना करना पड़ेगा अथवा नहीं। इस बात पर भी अटकलों को खूब हवा मिल रही है कि 2022 में अपना दूसरा कार्यकाल समाप्त करने के बाद शी तीसरा कार्यकाल भी ग्रहण करेंगे अथवा उत्तराधिकारी चुन लिया जाएगा। अधिवेशन के नतीजे से इस विषय में भी संकेत मिलेगा।

शी का पहला कार्यकाल बहुत हलचल भरा रहा। 2013 में शी के सत्ता में आने के बाद अर्थव्यवस्था धीमी हो चुकी है, लेकिन चीन ने दक्षिण चीन सागर में मजबूती के साथ बहुत मुख रहा है। जापान जैसे प्रमुख देश के साथ उसके संबंध बिगड़ चुके हैं। उत्तर कोरिया का प्रक्षेपास्त्र और परमाणु कार्यक्रम बहुत आगे बढ़ चुका है और उससे क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्थायित्व को खतरा पैदा हो चुका है। शी ने अपने पसंदीदा और बेहद महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) को वैश्विक रूप देते हुए आरंभ कर दिय। पीएलए का पुनर्गठन हुआ है और गहन सैन्य सुधार किए गए। इन वर्षों में अमेरिका का कूटनीतिक और सुरक्षा संबंधी विस्तार कम हुआ है और उसकी जगह लेने से चीन को लाभ हुआ। कुल मिलाकर शी की दृष्टि में उनके पहले पांच वर्ष सफलता भरे रहे हैं।

पार्टी अधिवेशन में घरेलू, आर्थिक, विदेशी एवं सुरक्षा नीतियों से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रणनीतिक दिशा भी प्रदान की जाएगीः क्या आर्थिक सुधारों को और गहराई मिलेगी?; क्या बाजार की ताकतों को काम करने की और स्वतंत्रता दी जाएगी?; क्या बुरे ऋण की समस्या से निपटा जाएगा?; क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं का समाधान किस प्रकार किया जाएगा? पीएलए का पुनर्गठन आरंभ हो चुका है और आने वाले वर्षों में भी यह जारी रहेगा? विदेश नीति के मोर्चे पर चीन से बीआरआई को और मजबूती देने तथा पड़ोस एवं मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने की अपेक्षा की जा सकती है। मौजूदा रुख इसी दिशा में संकेत करते हैं और इसे पहले से अधिक ठोस बनाया जाएगा। अमेरिका के साथ चीन के संबंधों को भी शी की विदेश नीति में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाएगा। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जल्द ही चीन की यात्रा कर सकते हैं। उस यात्रा से पता चलेगा कि द्विपक्षीय रिश्ते किस दिशा में जाएंगे।

भारत-चीन संबंधों का परिणाम जो भी रहे, पार्टी कांग्रेस द्वारा उनकी दिशा का विरोध किए जाने की संभावना न के बराबर है। शी सत्ता में रहेंगे और भारत के संबंध में अपनी वर्तमान नीतियों को चलाते रहेंगे। शी के पहले कार्यकाल में चीन-भारत संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहेंगे। शी और प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार मुलाकात की और दोनों के बीच अच्छा तालमेल हो गया है। किंतु इस मेलमिलाप को कुछ मौकों पर झटका भी लगा है क्योंकि चीन अपना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा गिलगिट-बाल्टिस्तान के भारतीय क्षेत्र से होते हुए बना रहा है और सीमा पर कई बार संकट की स्थिति बनी है, जैसे 2014 में शी के भारत दौरे के समय चुमार विवाद तथा 2017 में ब्रिक्स शिखर बैठक से पहले डोकलम विवाद। अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के कहने पर चीन परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के प्रवेश की राह लगातार रोकता रहा है। पाकिस्तान में रह रहे जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकवादियों की सूची में डालने के मामले में तकनीकी आपत्ति हटाने के भारत के अनुरोध की भी अनदेखी करने पर चीन तुला हुआ है। चीन-भारत संबंधों को भी खतरे में डालकर चीन-पाकिस्तान संबंधों को मजबूत बनाया जाता रहेगा।

पीपुल्स डेली में 13 अक्टूबर को प्रकाशित एक आलेख में चीन में सत्ता संघर्षों के प्रति पश्चिमी विश्लेषकों के आकर्षण की खिल्ली उड़ाई गई। उस दृष्टिकोण को खारिज करते हुए लेख में कहा गया, “... कहने की जरूरत नहीं है कि नेतृत्व परिवर्तन में कुछ नए लोग उभरेंगे और कुछ लोग अपना स्थान खो देंगे, लेकिन राष्ट्रीय अधिवेशन का मतलब केवल इतना नहीं है कि सिंहासन किसके हाथ आता है। हर बात में सत्ता संघर्ष देखने से धोखा हो जाता है क्येांकि पार्टी के सभी प्रयासों का उद्देश्य देश का कायाकल्प करना होता है।” संपादकीय में कहा गया कि पार्टी अधिवेशन पार्टी की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने तक यानी 2049 तक चीन को संपन्न समाज बनाने पर ध्यान लगाएगा।

ऐसा लगता है कि अधिवेशन के दौरान कुछ अप्रत्याशित घटनाएं होंगी। जिसके हाथ में सत्ता है, वह सुरक्षित और निर्भय दिख रहा है। ज्यादातर समस्याएं अधिवेशन से पहले ही निपटा ली गई हैं। शी के अभूतपूर्व बड़े कद को देखते हुए पार्टी में विरोधी गुट, यदि होंगे भी, तो चुपचाप बैठ जाएंगे। लेकिन अधिवेशन के समापन तक प्रतीक्षा करना और देखना ही समझदारी होगी। अधिवेशन का जो भी परिणाम आएगा, वह अधिवेशन समाप्त होने के बाद भी सभी पक्षों को चर्चा और विचार के लिए बहुत मसाला दे जाएगा।


(लेखक विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक हैं। वह उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी रह चुके हैं)

Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: http://static.atimes.com/uploads/2017/10/2017-10-18T012122Z_1380840105_R...

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.