Tuesday, January 16, 2018

जनता और वस्तुओं के सीमा पार आवागमन में जोखिम कम से कम करने पर विचार

16 Jan, 2018 | Pravas Kumar Mishra, Senior Fellow, VIF

वैश्वीकरण ने लोगों की आकांक्षाओं में ही वृद्धि नहीं की है बल्कि वेस्टफेलियन सिद्धांत पर चलने वाले राष्ट्रों की संप्रभुता को भी झकझोर दिया है। जैसे-जैसे देश अपनी क्षेत्रीय सीमाओं की पुष्टि करने के लिए क्षमता बढ़ा रहे हैं, वैसे-वैसे ही अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के नजदीक रहने वाले लेाग अपनी पारंपरिक जीवनशैली खो रहे हैं। इसीलिए दैनिक जीवन की उनकी प्राचीन शैली में दीवारें या बाड़, आव्रजन कानून और सीमाशुल्क कानून आड़े आ रहे हैं। परिणामस्वरूप सीमाओं पर मुक्त आवागमन अधिकारों तथा मुक्त व्यापार की मांग राष्ट्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जोर पकड़ने लगी है। किंतु अड़ोस-पड़ोस में बसे देशों में इन मांगों से संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है क्योंकि उन्हें डर है कि उनके बाजार सस्ते चीनी माल से पाट दिए जाएंगे। जातियों के बीच संघर्ष भी इन सरकारों की हिचक बढ़ा देते हैं। फिर भी सड़कों, रेल मार्ग और समुद्र के जरिये एशिया में सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जीवित करने और क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने की अहमियत आज ज्यादा महसूस की जा रही है। साथ ही वैध वाणिज्यिक यातायात में वृद्धि से अवैध व्यापार में कमी आने का और स्थानीय पर्यटन में मजबूती आने का भरोसा भी मिलता है।
सीमा-पार ‘हाट’ क्षेत्रीय आदान-प्रदान, लोगों में घनिष्ठता के केंद्र बनकर उभरे हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को एक-दूसरे से जोड़ते हैं और सांस्कृतिक संवाद में सहायता करते हैं। भारत-बांग्लादेश सीमा पर मेघालय में डॉकी और अगरतला में हाट पहले से चल रही है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर चालीस हाट और खुलने वाली हैं। चटगांव और मंगला बंदरगाहों को हमारे कोलकाता और हल्दिया बंदरगाहों के लिए खोलने की शेख हसीना की घोषणा ने इन गतिविधियों में और तेजी ला दी है। फेनी नदी पर पुल चटगांव और अगरतला को जोड़ेंगे। मेघना नदी पर दूसरे पुल का दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापार पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। 2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच गलियारों की अदलाबदली ने उत्तर बंगाल और असम की सीमाओं पर सुरक्षा तथा आबादी से जुड़ी समस्याओं पर लंबे अरसे से जारी गतिरोध समाप्त कर दिया था। इसके साथ ही सीमा की निगरानी करने वाले बलों को परेशान करने वाले भूमि कब्जे के मामले भी हमेशा के लिए खत्म हो गए हैं।
भारत-बांग्लादेश सीमा खुली सीमा नहीं है। फिर भी भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद 1971 से 1974 के बीच और शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद 1975 से 1977 के बीच बांग्लादेशी पलायन कर हमारे देश में आ गए। अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तीसरी बार घुसपैठ हुई। भारत और बांग्लादेश के सीमावर्ती जिलों विशेषकर उत्तर 24 परगना, नदिया, मुर्शीदाबाद, मालदा, गोलपाड़ा, धुबरी, करीमगंज और सिलचर में आबादी से जुड़ी तस्वीर में कई बदलाव आ गए हैं। फिर भी शेख हसीना के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार के भारत से साथ सबसे मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड और रैपिड एक्शन बटालियनों की मदद से हमारी सीमा के दूसरी तरफ मौजूद सभी भारतीय और बांग्लादेशी आतंकवादी शिविर स्थायी रूप से समाप्त कर दिए गए और भारत विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम तथा मेघालय में छिपे जमात-उल-मुजाहिदीन ऑफ बांग्लादेश (जेयूएमबी), इस्लामिक छात्र शिविर और अंसारुल्ला तालिबान ऑफ बांग्लादेश (एटीबी) के कार्यकर्ताओं को पकड़ने के लिए बांग्लादेश और भारत की सुरक्षा एजेंसियां साथ में काम कर रही हैं।
नशे, मानव तथा हथियारों की तस्करी तथा अवैध आवाजाही पर अंकुश लगाने के लिए भारत को सीमा पर निगरानी बढ़ानी होगी। सभी जानते हैं कि देह व्यापार के लिए पश्चिम एशिया भेजी जाने वाली बांग्लादेशी और नेपाली लड़कियों को कोलकाता, दिल्ली और मुंबई के रास्ते ही भेजा जाता है। माना जाता है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी की मदद से रोहिंग्या नशे और मानव तस्करी, छोटे हथियारों और गोला-बारूद के अवैध व्यापार तथा सीमा पार से घुसपैठ में लिप्त हैं। इसके अलावा खबरें हैं कि लश्कर-ए-तैयबा रोहिंग्या समुदाय को भारत के खिलाफ युद्ध के लिए भड़का चुका है, जिससे भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए खतरा है। पाकिस्तान की इंटरसर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई), इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) और अलगाववादी तत्व भारत तथा उसके पड़ोसियों को अस्थिर करने के लिए बाड़ और निगरानी रहित अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का दुरुपयोग करते हैं। आईएसआई के तत्व पूर्वोत्तर में भी सक्रिय हैं और सांप्रदायिक विवाद पैदा करने के लिए पीपुल्स यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट (पीयूएलएफ) तथा मुस्लिम यूनाइटेड लिबरेशन टाइगर्स ऑफ असम (एमयूएलटीए) की वित्तीय मदद कर रहे हैं। आईएस भी जेयूएमबी तथा एटीबी जैसे स्थानीय चरमपंथी गुटों के साथ मिलकर बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में जोर आजमा रहा है। आईएसआई बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में एटीबी, आईसीबी और तमाम जमातों के साथ मिलकर हिंदू मंदिरों तथा अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले की योजना बनाने के लिए कुख्यात है। भारत में पैठ जमाने तथा उत्तर 24 परगना, नदिया, मुर्शीदाबाद, मालदा, धुबरी, गोलपाड़ा, कोकराझार, करीमगंज और सिलचर के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने शिविर चलाने के लिए जमातों तथा जेयूएमबी को जाली भारतीय नोट मुहैया कराए जा रहे हैं। आईएसआई की वित्तीय मदद से और बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की शह पर बांग्लादेश में जमातें शिया स्थलों, शिया मुस्लिम सभाओं और शिया इबादतगाहों पर हमले कर रही हैं। आईएसआई बांग्लादेश में हसीना की सरकार को हटाकर बेगम जिया की सरकार बनवाना चाहता है और लंदन में बेगम जिया के दोनों पुत्रों अराफात तथा तारिक रहमान के सारे खर्च उठा रहा है। जमात ने भारत को उकसाने के लिए 21 फरवरी, 2016 को देवीगंज में संतगौरिया मंदिर के हिंदू पुजारी यज्ञेश्वर रॉय (50) की हत्या कर दी है। आईएसआई द्वारा प्रशिक्षित जेहादियों का बांग्लादेश से घुसैठ कराना हमारी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है।
भूटान और भारत के बीच सीमा खुली है और भारत से मिलने वाली औद्योगिक सहायता विशेषकर जलविद्युत परियोजनाओं के जरिये भूटान की आर्थिक वृद्धि को तेज करती है। भूटान भारत के सबसे भरोसेमंद और पुराने मित्रों में शुमार है। भूटान के साथ मजबूत संबंधों पर लगातार निवेश से भारत को सिलिगुड़ी गलियारे पर चीन का खतरा रोकने में मदद मिलेगी। इसके अलावा भूटान की संवेदनाओं का ध्यान रखने के लिए लोगों और माल के सीमा-पार आवागमन पर स्थानीय प्रशासन को बल देना होगा।
नेपाल के साथ खुली सीमा के विचार को भारत और नेपाल के बीच 1950 में हुई शांति तथा मैत्री संधि के अनुसार बढ़ाते रहना चाहिए। भारत को मधेशियों और पहाड़ों पर बसे बाकी नेपालियों के बीच संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नेपाल के साथ सीमावर्ती संवाद हमेशा चलता रहे।
भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद का कारण घुसपैठ तथा स्थानीय उग्रवादी गुटों का विदेशी चरमपंथियों के साथ संपर्क है। भारत ने अभी तक 39 आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है और उनमें सबसे ज्यादा असम तथा मणिपुर में सक्रिय हैं। भारत-म्यांमार सीमा पर नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड - खापलांग (एनसीएन-के) पूर्वोत्तर की सुरक्षा के लिए समस्या पैदा कर रहा है। बांग्लादेश द्वारा अनूप चेटिया को भारत के हाथ सौंपे जाने से यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) को बातचीत के लिए बाध्य होना पड़ा है। यह बात अलग है कि उल्फा प्रमुख परेश बरुआ इसमें शामिल नहीं होना चाहता। परेश बरुआ के सैन्य प्रमुख विजय चाइनीज ने भारत सरकार के साथ शांति वार्ता का समर्थन कर दिया है। वामपंथी चरमपंथियों के लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, एनएससीएन-के और पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के साथ रिश्तों की समुचित जांच की जानी चाहिए और नेपाल, बांग्लादेश, भारत तथा भूटान के सीमारक्षकों को ये कड़ियां तोड़ने के लिए अधिक से अधिक सहयोग करना चाहिए। अपने पड़ोसियों के साथ दोस्ती मजबूत करने के लिए हमें मुक्त सीमा के आरपार व्यापार तथा लोगों और वस्तुओं के आवागमन पर नजर रखनी होगी और उनका नियमन करना होगा तथा सीधी बातचीत के जरिये आधिकारिक बाधाएं दूर करनी होंगी।
बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल मंच के जरिये भारत आर्थिक रिश्तों तथा पारस्परिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे इन देशों में अवैध प्रवासियों की घुसपैठ पर भी परोक्ष रोक लगेगी। इस प्रयास की सफलता सीमाओं का प्रभावी प्रबंधन पर होगी। इसके लिए सीमा पर रहने वालों को साथ लेना होगा और सीमावर्ती क्षेत्र विकास कोषों में वृद्धि कर सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास करना होगा। ‘स्मार्ट बॉर्डर’ की कल्पना तभी साकार हो सकती है, जब सीमा की निगरानी करने वाले बलों तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात अन्य सभी सुरक्षा तथा प्रशासनिक एजेंसियों के बीच गहरा तालमेल हो। इसके लिए साथ उनका लक्ष्य सीमा पर रहने वालों को बेहतर सुविधाएं तथा उनके अधिकार प्रदान करना होना चाहिए। इसके लिए बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड और नेपाल पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त गश्त करनी होगी। सीमा पर गायब हो चुके कई खंभों को दोबारा खड़ा करना होगा और क्षतिग्रस्त खंभों की मरम्मत करनी होगी। पिछले कुछ वर्षों से असम के उग्रवादी विशेषकर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) शरण लेने के लिए भूटान पहुंच रहे थे, जिसे भूटानी सुरक्षा एजेंसियों की मदद से और उनके खिलाफ अभियान चलाकर रोक दिया गया है।
बांग्लादेश के साथ बातचीत के नतीजे आने ही लगे हैं। नेपाल के साथ सीमा पार संवाद पर असर पड़ा है, जिसे मजबूत करना होगा और सभी पड़ोसियों के साथ वस्तुओं का परिवहन आने वाले वर्षों में तेज हो जाएगा। भारत को भूटान, नेपाल तथा बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में पनबिजली परियोजनाओं के तकनीकी उन्नयन में भी मदद करनी चाहिए। हम इन देशों से अतिरिक्त बिजली खरीद सकते हैं, जिससे व्यापार तथा वाणिज्य में द्विपक्षीय संबंध मजबूत होंगे। बंगाल की खाड़ी में स्थित और भारत तथा बांग्लादेश को जोड़ने वाले सुंदरवन का पर्यावरणीय तथा तकनीकी उन्नयन करने की आवश्यकता है। भूटान और बांग्लादेश के साथ संयुक्त औद्योगिक कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और भारत के बीच सड़क, रेल और समुद्र मार्ग से सीमा पार आवाजाही बहुत अधिक बढ़ी है। जलवायु परिवर्तन की समस्याएं बांग्लादेश में आम हैं और उनके कारण निचले स्तर वाले इलाकों से लोगों को पलायन पर विवश होना पड़ा है। बांग्लादेश ही नहीं भारत को भी इस पर प्रभावी रूप से काबू करना होगा।
भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय शांति में भी अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। झंझटरहित यात्री एवं माल परिवहन के जरिये मोटर वाहन समझौते को बड़े एशियाई बाजारों में भी पहुंचना चाहिए। इन चारों देशों में साइबर अपराध तथा साइबर प्रशिक्षण पर प्राथमिकता के साथ नजर रखी जानी चाहिए और साझा साइबर नेटवर्क संस्था भी होनी चाहिए एवं साइबर अपराध के विषय में खुफिया जानकारी का आदान प्रदान भी होना चाहिए ताकि अधिकाधिक परिणाम मिल सकें।
सीमावर्ती बुनियादी ढांचे के विकास पर फौरन ध्यान दिया जाना चाहिए और सीमा सुरक्षा बलों को आधुनिक बनाने के लिए रकम भी जारी की जानी चाहिए। सीमा पर रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य संबंधी खतरों पर फौरन ध्यान दिया जाना चाहिए और सीमा निगरानी बलों के अस्पतालों को उन लोगों की सेहत संबंधी परेशानियों का निदान करना चाहिए। हमें पड़ोसी देशों के साथ सीमावर्ती इलाकों में शिक्षा, लॉजिस्टिक्स, अर्थव्यवस्था, आवास, भूमि समस्याओं, व्यापार, रोजगार तथा लोगों के बीच संबंधों पर निवेश करना होगा। लोगों और वस्तुओं की अवैध घुसपैठ रोकनी है तो संयुक्त प्रशिक्षण और सीमा पर खुफिया जानकारी के आदान प्रदान के साथ ही आभासी बाड़, टेसर, ड्रोन, रडार, लंबी दूरी तक निगरानी तथा जासूसी करने वाली प्रणालियों, सुरंग खोजने वाले उपकरणों, निगरानी तथा पानी के भीतर काम करने वाले सेंसरों, हवाई क्षमताओं जैसी बेहतर तकनीक प्रदान करने के लिए एक-दूसरे का साथ देना होगा।
अंत में देश के सांप्रदायिक रूप से प्रभावित क्षेत्रों में शांति, जागरूकता, शिक्षा और विकास को बढ़ावा देने के लिए सभी समुदायों के धार्मिक नेताओं को अपने साथ शामिल करना होगा।
(प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार हैं और वीआईएफ का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है)

Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)

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