Wednesday, November 8, 2017

रावलपिंडी का रणनीतिक गणित और पाकिस्तानी चुनावी राजनीति में आतंकी पार्टियों का उदय



Varun Nambiar, Research Intern, VIF

अगस्त में जब पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोप के कारण पद पर रहने के अयोग्य करार दिया1 तो आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयवा की जनोपकारी शाखा जमात-उद-दावा (जेयूडी) ने ऐलान कर दिया कि वह राजनीति में प्रवेश करेगी और नवाज शरीफ की खाली हुई सीट – लाहौर में एनए-120 पर चुनाव लड़ने के लिए अपना प्रत्याशी उतारेगी।2 खुद को मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) कहने वाली यह नई राजनीतिक पार्टी चुनावी राजनीति में लश्कर का पहला कदम है।
लश्कर-ए-तैयबा
लश्कर ऐसा आतंकी संगठन है, जिस पर दुनिया भर में रोक लगी है। लश्कर का सहयोगी संगठन होने के कारण जमात-उद-दावा पर भी अमेरिका, भारत और यूरोपीय संघ समेत कई देशों और अंतरराष्ट्रीय समूहों ने प्रतिबंध लगा रखा है। जेयूडी और लश्कर के दो संस्थापकों हाफिज मुहम्मद सईद और जकी-उर्रहमान समेत उसके कई नेताओं को आतंकवादी घोषित कर दिया गया है। उन दोनों को दिसंबर, 2008 की सूची में डाला गया था।3
2014 में अमेरिकी वित्त विभाग ने लश्कर के नजीर अहमद चौधरी और मुहम्मद हुसैन गिल को विशेष रूप से घोषित वैश्विक आतंकवादी करार दिया। इसके साथ ही लश्कर और जमात-उद-दावा के साथ जुड़े घोषित आतंकवादियों की संख्या 20 से अधिक हो गई।4 अमेरिका की सरकार ने छह समूहों के नाम भी सूची में डाले, जो देखने में तो अलग हैं, लेकिन वास्तव में लश्कर के ही अंग हैं या उससे करीब से जुड़े हैं। ये नाम हैं जमात-उद-दावा, अल-अनफल ट्रस्ट, तहरीक-ए-हुरमत-ए-रसूल, तहरीक-ए-तहाफुज किब्ला अव्वल, फलह-इ इंसानियत फाउंडेशन (एफआईएफ) और इदरा खिदमत-ए-खलाक (आईकेके)।5 अमेरिका ने लश्कर और जमात-उद-दावा के एक और प्रमुख सदस्य हाफिज अब्दुल रहमान मक्की को पकड़वाने के लिए सूचना वाले व्यक्ति को 20 लाख डॉलर का इनाम देने की घोषणा भी की है।6 पाकिस्तान पर नजर रखने वाले विश्लेषक मक्की पर इनाम की घोषणा सुनकर हैरत में पड़ गए क्योंकि वह नई-नवेली पार्टी एमएमएल के लिए समर्थन जुटाने को पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में खुलेआम प्रचार करता रहता है और जनसभाओं को संबोधित करता रहता है।7
चुनावी राजनीति में आने से काफी पहले कई वर्षों तक लश्कर परोपकार के कामों के जरिये अपनी नरम छवि पेश करने की कोशिश करता रहा था ताकि लोगों में उसकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता बढ़ सके। परोपकारी संगठन कहलाने वाले एफआईएफ की स्थापना भी इसीलिए की गई थी।8 लोगों से संपर्क का समूह का कार्यक्रम निस्संदेह मजबूत रहा है क्योंकि पाकिस्तान के भीतर तो उसने कुछ सहानुभूति जुटा ही ली है। भूकंप9 और बाढ़10 के बाद उसके सहायता कार्य ने समाज के भीतर उसके प्रति काफी सद्भावना जुटा दी और कई लोग इस संगठन को वैसी सेवाएं देने में सक्षम मानने लगे, जो सेवाएं पाकिस्तान सरकार नहीं दे पा रही है। लश्कर ने अपनी सभाओं में इक्का-दुक्का सिख वक्ताओं11 को बोलने की अनुमति देकर और सिंध में गरीब हिंदू परिवारों को दान देकर ‘अल्पसंख्यक हितैषी’ छवि बनाने का भी प्रयास किया है। ध्यान देने वाली बात है कि कि कुछ थारपारकर हिंदुओं ने फरवरी, 2017 में हाफिज की नजरबंदी के खिलाफ विरोध किया था।12 हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती कि ये विरोध प्रदर्शन स्वतःस्फूर्त थे या नहीं - हो सकता है कि बलपूर्वक प्रदर्शन कराए गए हों - लेकिन उनसे पता चलता है कि लश्कर/जमात-उद-दावा हिंसक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकी समूह की अपनी छवि पर ‘लीपापोती’ करने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।
तहरीक-ए लबाइक या रसूल अल्लाह
अहल-ए-हदीस आंदोलन की शिक्षाओं की हिंसक व्याख्या करने वाला लश्कर ही पाकिस्तान की वर्तमान राजनीति में सक्रिय इकलौता हिंसक चरमपंथी समूह नहीं है। नवाज शरीफ की खाली सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला करने वाली एक और पार्टी तहरीक-ए लबाइक पाकिस्तान (टीएलपी) लश्कर है, जो पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या करने वाले बरेलवी चरमपंथी मुमताज कादरी का खुलेआम समर्थन करने वाले बरेलवी चरमपंथी संगठन तहरीक-ए लबाइक या रसूल अल्लाह (टीएलवाई) की राजनीतिक अवतार है। टीएलवाई की शुरुआत उसे जेल से रिहा कराने के लिए आंदोलन के तौर पर हुई थी।13
टीएलवाई के प्रमुख नेताओं में सभी तेजतर्रार बरेलवी धार्मिक नेता हैं। उसके केंद्रीय नेतृत्व में पीर अफजल कादरी, खादिम हुसैन रिजवी और डॉ. अशरफ जलाली जैसे नाम हैं।14 एमएमल-लश्कर/जमात-उद-दावा से उलट टीएलपी और उसके मूल संगठन टीएलवाई की परोपकार या सामुदायिक सेवाओं की कोई पृष्ठभूमि नहीं है। उनकी लोकप्रियता और आकर्षण का आधार विशुद्ध रूप से धार्मिक और वैचारिक है। टीएलवाई और उसकी राजनीतिक शाखा टीएलपी खुद को इस्लाम के सम्मान की रक्षक और पाकिस्तान के ईशनिंदा कानूनों की संरक्षक के रूप में दिखाती हैं। वे कानून जबरन थोपे जाने का खुलेआम समर्थन करती हैं। धर्म अथवा पैगंबर की निंदा करने का आरोप जिस पर भी हो, उसे भीड़ द्वारा स्वयं सजा दिए जाने की पैरवी टीएलवाई करता है और जनता के बीच इस तरह के इंसाफ की लोकप्रियता ही उस समूह के उदय और लोकप्रियता का कारण है। आंदोलन के प्रतीक वे लोग हैं, जिन्होंने धर्म के नाम पर कानून अपने हाथ में लिया है, जैसे मुमताज कादरी, तनवीर अहमद15 - जिसने ग्लासगो में एक अहमदी व्यक्ति को मारा था16 - और मशाल खान के हत्यारे।17
टीएलवाई आंदोलन को कई प्रभावशाली व्यक्तियों का समर्थन मिला है। रावलपिंडी से राष्ट्रीय असेंबली में विपक्ष के सदस्य शेख रशीद अहमद, जो पाकिस्तानी सेना के करीब माने जानते हैं और जनरल मुशर्रफ की सैन्य सरकार के सदस्य होने के साथ ही छह बार केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं, ने टीएलवाई और मुमताज कादरी को खुला समर्थन दिया है।18 पाकिस्तान में मौजूदा केंद्र सरकार के कुछ वर्ग भी टीएलवाई आंदोलन के समर्थक हैं। धार्मिक मामलों एवं धर्मों के बीच सौहार्द के राज्य मंत्री पीर हसनत शाह ने भी टीएलवाई और उसकी विचारधारा का समर्थन किया है।19 उन्होंने मुमताज कादरी के प्रति भी सहानुभूति जताई है।20 कई छोटे बरेलवी चरमपंथी समूहों का टीएलवाई और टीएलपी में विलय भी आरंभ हो गया है। तहरीक सिरक ए मुस्तकीम और तहरीक ए तहफूज ए इस्लाम जैसे समूहों ने टीएलवाई को समर्थन दे दिया है और इस तरह समूह की लोकप्रियता तथा वित्तीय ताकत बढ़ने लगी है।
परिणाम
राष्ट्रीय असेंबली - 120 के परिणाम का चुनाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण हिस्सा अपेक्षा के अनुरूप ही रहा। इस चुनाव क्षेत्र में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) का दबदबा है और सत्ता से बेदखल किए गए पा्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बीमार पत्नी कुलसूम नवाज ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की। लेकिन पार्टी के पक्ष में पहले से कम वोट पड़े।
कई लोगों को (पाकिस्तान पर करीब से नजर रखने वलों को नहीं) इस बात से हैरत हुई कि पहली बार चुनाव लड़ने वाली दो आतंकी पार्टियों एमएमल और टीएलपी ने पीएमएल-एन और इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के बाद क्रमशः चौथा और तीसरा स्थान हासिल कर लिया। लेकिन इस बात से ज्यादा हैरत नहीं हुई कि दोनों आतंकी पार्टियों ने अपने दम पर ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) से अधिक वोट हासिल कर लिए, जो उदार वाम झुकाव वाली पार्टी है और एक समय जिसे पूरे पाकिस्तान में समर्थन हासिल था। 1970 के चुनावों में इस क्षेत्र से पीपीपी के अध्यक्ष जुल्फिकार भुट्टो ने जीत हासिल की थी, जिन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और शायर तथा दार्शनिक मुहम्मद इकबाल के पुत्र जावेद इकबाल को 45211 वोटों से हराया था।21 पाकिस्तान की चुनावी राजनीति में पीपीपी के पतन के साथ आतंकी पार्टियों का उदय इस बात का स्पष्ट संकेत है कि देश में उदार वामपंथी तथा उदारवादी राजनीति खत्म हो रही है।
आतंकी पार्टियों का यह प्रदर्शन एकाएक नहीं हो गया था। प्रतिबंधित सिपह-ए-सहाबा से ताल्लुक रखने वाले संदिग्ध आतंकियों की सूची में शुमार मसरूर झांगवी ने पिछले वर्ष पंजाब प्रांतीय असेंबली की सीट (पीपी-178) का उपचुनाव जीता था।22 बाद में वह मौलाना फजलुर्रहमान की पार्टी जेयूआई-एफ में शामिल हो गए। फजलुर्ररहमान और उनकी पार्टी पीएमएल-एन की सहयोगी हैं। पाकिस्तानी चुनावी राजनीति में आतंकियों की बड़ी उपस्थिति के संकेत तभी मिल गए थे।
रावलपिंडी की शह पर काम करने वाले मुख्यधारा में
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि आतंकी समूहों को चुनावी राजनीति में लाने का यह प्रयास रावलपिंडी में मुख्यालय वाली पाकिस्तानी सेना के इशारे पर किया जा रहा है। पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान के सेवानिवृत्त सदस्य और राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रतिष्ठान के सक्रिय अनाधिकारिक प्रवक्ता ले. जन. अमजद शुएब ने रॉयटर्स के सामने स्वीकार किया था कि इन आतंकी समूहों के चुनावी राजनीति में प्रवेश के पीछे सेना का हाथ है23, जो उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया की मुख्यधारा में लाना चाहती है ताकि उनकी ‘आक्रामकता खत्म’ की जा सके।
लश्कर नेतृत्व पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने 2000 के दशक के आरंभ में सेना को समूह की ‘नरम छवि’ गढ़ने के लिए मजबूर कर दिया था। जमात-उद-दावा-एफआईएफ का गठन तथा समूह की परोपकारी गतिविधियां रावलपिंडी की सरपरस्ती में ही हुई थीं। समूह को चुनावी राजनीति के जरिये मुख्यधारा में लाने का हालिया प्रयास भी उसी नीति के तहत एक और प्रयास माना जा सकता है।
निष्कर्ष
देश के राजनीतिक परिदृश्य में धार्मिक चरमपंथियों के प्रवेश में मदद करना पाकिस्तानी सेना के लिए नया नहीं है। चरमांथियों के प्रभाव वाले आंदोलनों जैसे पाकिस्तान नेशनल अलायंस24, इस्लामी जम्हूरी इत्तहाद25 और दिफा-ए पाकिस्तान काउंसिल26 को बढ़ावा देने में उसकी पुरानी भूमिका रही है। इतिहास उस मौत, विनाश और अराजकता का भी गवाह रहा है, जिसका कारण पाकिस्तान में आतंकी समूहों को पाकिस्तानी सेना द्वारा मिल रहा समर्थन है। ‘अच्छे’ आतंकी समूह की मुहर वाले संगठन को ‘बुरे’ आतंकी समूह में बदलने में वक्त नहीं लगता क्योंकि टूटे हुए छिटपुट तत्व कभी भी बदमाशी पर उतर सकते हैं। जैश-ए-मुहम्मद इसका प्रमाण है, जिसने जनरल मुशर्रफ की हत्या का प्रयास किया।27
अपनी जमीन से काम कर रहे आतंकी समूहों के प्रति अपनी नीति बदलना ही पाकिस्तान के लिए अच्छा होगा। ‘मुख्यधारा में लाने’ की दलील में बहुत दम नहीं है क्योंकि ये आतंकी पार्टियां अपनी विचारधाराएं छोड़कर मुख्यधारा की विचारधाराएं नहीं अपना रही हैं बल्कि वे मुख्यधारा के राजनीतिक पटल पर अपनी आतंकी विचारधाराओं को थोपने की कोशिश कर रही हैं। बताने की जरूरत नहीं है कि यह बहुत जोखिम भरा कदम है, जो भविष्य में अनर्थ कर सकता है। पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में कहा था कि वहां राजनीतिक पार्टियों के पास अपनी आतंकी शाखाएं हैं।18 दुर्भाग्य से पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की अपनी ही नीतियों के कारण आज स्थिति इतनी खतरनाक हो गई है कि पाकिस्तान के आतंकी समूहों की अपनी राजनीतिक शाखाएं हो गई हैं।
संदर्भ
1. ‘पाकिस्तान पीएम नवाज शरीफ रिजाइन्स आफ्टर पनामा पेपर्स वर्डिक्ट’, बीबीसी, 28 जुलाई 2017, www.bbc.com/news/world-asia-40750671
2. शफकत अली, ‘हाफिज सईद्स पार्टी फील्ड्स कैंडिडेट फ्रॉम शरीफ सीट’, 14 अगस्त 2017, द एशियन एज, www.asianage.com/world/asia/140817/hafiz-saeeds-party-fields-candidate-f...
3. 1267 समिति की सूची में लश्कर और जमात-उद-दावा को शामिल किए जाने के संबंध में: http://www.un.org/sc/committees/1267/pdf/AQList.pdf
4. अमेरिकी वित्त मंत्रालय, “ट्रेजरी सैंक्शन्स टू सीनियर लश्कर-ए-तैयबा नेटवर्क लीडर्स”, 25 जून, 2014: https://www.treasury.gov/press-center/press-releases/Pages/jl2440.aspx
5. अमेरिकी विदेश विभाग, “एडिशन ऑफ एलियसेस जमात-उद-दावा एंड इदारा खिदमत-ए-खल्क टु द स्पेशली डेजिग्नेटेड ग्लोबल टेररिस्ट डेजिग्नेशन ऑफ लश्कर-ए-तैयबा”, 28 अप्रैल, 2006: https://2001-2009.state.gov/r/pa/prs/ps/2006/65401.htm
6. अमेरिकी विदेश मंत्रालय , ‘रिवार्ड्स फॉर जस्टिस’, “इन्फॉर्मेशनद दैट ब्रिंग्स टु जस्टिस... हाफिज अब्दुल रहमान मक्की”: https://rewardsforjustice.net/english/hafiz_makki.html
7. अब्दुल रहमान मक्की का फैसलाबाद में 14 अगस्त, 2017 को दिया भाषण देखें: https://www.youtube.com/watch?v=B6h3DnPU-Bw
8. मोहम्मद जिब्रान निसार, “पॉपुलराइजिंग टेररिस्ट्सः हाउ मिलिटेंट्स हैव बिकम अ पॉलिटिकल फोर्स इन पाकिस्तान”, द नेशन, 18 सितंबर, 2017: nation.com.pk/blogs/18-Sep-2017/na-120-the-by-election-belonged-to-hafiz-saeed
9. असद हाशिम, “मिलिटेंट-लिंक्ड चैरिटी ऑन फ्रंट लाइन ऑफ पाकिस्तान क्वेक एड”, रॉयटर्स, 30 अक्टूबर, 2015: www.reuters.com/article/us-pakistan-quake-militants/militant-linked-char....
10. उमर फारूक खानी, “जेयूडी की प्लेयर इन फ्लड ऑप्स इन पाक”, द टाइम्स ऑफ इंडिया, 4 अगस्तर, 2010: timesofindia.indiatimes.com/world/pakistan/JuD-key-player-in-flood-ops-in-Pak/articleshow/6257979.cms
11. सितंबर, 2017 में गोपाल सिंह (पाकिस्तान सिख चरमपंथी) का लाहौर की जनसभा में दिया भाषण देखें: https://www.youtube.com/watch?v=B5uqJqc2G7k
12. “हिंदूज प्रोटेस्ट हाफिज सईद्स हाउस अरेस्ट”, द एक्सप्रेस ट्रिब्यून, 2 फरवरी, 2017: https://tribune.com.pk/story/1314323/raising-voice-hindus-protest-hafiz-..
13. जैगम खान, “रिलीजियस पॉलिटिक्स आफ्टर एनए-120”, द न्यूज, 25 सितंबर, 2017: https://www.thenews.com.pk/print/232377-Religious-politics-after-NA-120
14. जिया उर रहमान, “प्रो-मुमताज कादरी रिलीजियस ग्रुप मॉर्फिंग इनटु मिलिटेंट आउटफिट”, द न्यूज, 31 जुलाई, 2017: https://www.thenews.com.pk/print/220108-Pro-Mumtaz-Qadri-religious-group..
15. तनवीर अहमद के समर्थन में हुई टीएलवाई की सभा देखें, जहां उसकी प्रशंसा में लिखी गई नशीद गाई जा रही थी: https://www.youtube.com/watch?v=QCsxTkvLEp4
16. सेवरिन कैरेल, “मैन हू मर्डर्ड ग्लासगो शॉपकीपर असद शाह इन सेक्टेरियन अटैक जेल्ड”, द गार्डियन, 9 अगस्त, 2016: https://www.theguardian.com/uk-news/2016/aug/09/tanveer-ahmed-jailed-for...
17. मशाल खान के हत्यारों के बचाव में खादिम हुसैन रिजवी की दलीलें देखिए: https://www.youtube.com/watch?v=3ZQ9IAPKvf8
18. टीएलवाई और मुमताज कादरी के समर्थन में शेख रशीद अहमद का भाषण देखिए: https://www.youtube.com/watch?v=vzpn6yIsUAk
19. पीर सैयद अमीन-उल-हसनत शाह की इस्लामाबाद में तहरीक-ए-लबाइक रसूल-उल्ला प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात, रेडियो पाकिस्तान, 18 मई, 2017: www.radio.gov.pk/18-May-2016/pir-syed-amin-ul-hasnat-shah-meets-tehreek-...
20. मुमताज कादरी पर हसनत शाह का भाषण देखिए: https://www.youtube.com/watch?v=vtoC6h59ksc
21. नदीम एफ पारचा, “द अपकमिंग बैटलग्राउंड”, डॉन, 6 अगस्त, 2017: https://www.dawn.com/news/1349892/smokers-corner-the-upcoming-battleground
22. राणा तनवीर, “लॉमेकर-इलेक्ट मसरूर झांगवी जॉइन्स जेयूआई-एफ”, द एक्सप्रेस ट्रिब्यून, 7 दिसंबर, 2016: https://tribune.com.pk/story/1256528/lawmaker-elect-masroor-jhangvi-join..
23. आसिफ शहजाद, “पाकिस्तान आर्मी पुश्ड पॉलिटिकल रोल फॉर मिलिटेंट-लिंक्ड ग्रुप्स”, रॉयटर्स, 16 सितंबर, 2017: https://in.reuters.com/article/pakistan-politics-militants/pakistan-army...
24. हुसैन हक्कानी, पाकिस्तानः बिटवीन मॉस्क एंड मिलिटरी, कार्नेगी एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस, 2005, पृष्ठ 70-79
25. “हामिद गुल एक्सेप्ट्स रिस्पॉन्सिबिलिटी फॉर क्रिएटिंग आईजेआई”, डॉन, 30 अक्टूबर, 2012: https://www.dawn.com/news/760219
26. इम्तियाज अहमद, “आईएसआई बिहाइंड न्यू पॉलिटिकल पार्टी, दिफा-ए-पाक”, हिंदुस्तान टाइम्स, 21 फरवरी, 2012: www.hindustantimes.com/world/isi-behind-new-political-party-difa-e-pak/s..
27. सलमान मसूद, “पाकिस्तानी लीडर इस्केप्स अटेंप्ट एट असेसिनेशन”, द न्यूयॉर्क टाइम्स, 26 दिसंबर, 2003: www.nytimes.com/2003/12/26/world/pakistani-leader-escapes-attempt-at-ass..
28. कराची स्वतः संज्ञान कार्रवाई मामले में पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय का 2011 का फैसला देखें: www.supremecourt.gov.pk/web/user_files/File/SMC16of2011_detailed_judgmen...

Translated by: Shiwanand Dwivedi (Original Article in English)
Image Source: http://www.aljazeera.com/news/2017/08/pakistani-terrorist-charity-launch...

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